Quick Fact
Name
Lako Bodra
BIRTH DATE
19.9.1919
DEATH DATE
29.6.1986
EDUCATION
Graduation in B.Sc(Homeopathic)
OCCUPATION
Thinker, Poet, Writer, Dramatist
WIFE
Janki Purty
PLACE OF BIRTH
Paseya,Khutpani, West Singhbhum
PLACE OF DEATH
Tata Main Hospital(TMH),Jamshedpur
PARENTS
Lebeya Bodra(Father)
Jano Kui(Mother)
CHILDREN
1.Kadal Mai,
2.Lalitanjani Singh Bodra(Munna)
3.Bheem Vallabh Singh Bodra/Bing Vikram Singh Bodra(Sada)
4.Bah Mai Manju Bodra,
5.Ranjit Singh Bodra(Leete),
6.Bah Mai Keya Pul Bodra,
7.Sinu Bodra
8.Lal Lebeya Singh Bodra & Nil Lebeya Singh Bodra
व्यक्तित्व
(1919-1986)
वे वारङ क्षिति लिपि के प्रवर्तक तो थे ही उनकी जीवन शैली में अजीव तरह आकर्षण था। यूँ कहा जाय उनमें सम्मोहन शक्ति थी। वे धार्मिक भावनाओं के होते हुए भी व्यावहारिक एवं मधुर स्वभाव के थे।
गुरु कोल लाको बोदरा का व्यक्तित्व जिस रूप में देखा जाय उस रूप में नजर आता है। कोई व्यक्ति अकारण ही लोकप्रिय नहीं होता। लोकप्रिय बनने वाले व्यक्ति में कुछ खास एवं अतिरिक्त गुणों का समावेश होता है जा उन्हें आम आदमी से अलग कर खास दर्जा दे कर लोकप्रिय बनाता है और व्यक्ति को बिलक्षणता प्रदान करता है।
इसमें भी कोई शक या हैरानी की बात नहीं कि लाको बोदरा में भी कई खास गुणों का समावेश था।
वे मानवीय गुणों से युक्त विशाल ह्दय के स्वामी अनुकरणीय आदर्शो से पूरित महामानव थे।
वे लम्बे श्याम विराजमान रहने वाली चिर परिचित मुस्कान, आँखों में हर किसी को सम्मोहित कर लेने वाली चमक। कड़ी मेहनत धर्म-कर्म-उपवास में दिन गुजारता उनके जीवन का पर्याय था।
वे लोगों के बीच शिक्षा विद, समाज सेवा, कवि, लेखक, नाटककार, चिकित्सक, धर्मगुरू के रूप में पूजे जाते यहाँ तक कि कुछ लोगों ने तो उन्हें भगवान तक मान डाला।
वे वारङ क्षिति लिपि के प्रवर्तक तो थे ही उनकी जीवन शैली में अजीव तरह आकर्षण था। यूँ कहा जाय उनमें सम्मोहन शक्ति थी। वे धार्मिक भावनाओं के होते हुए भी व्यावहारिक एवं मधुर स्वभाव के थे।
उनमें हो समाज को राष्ट्रीय धारा से जोड़ने की उत्कट अभिलाषा थी।
भू. पूर्व वन मंत्री स्व. टयूडर बोदरा जी लाको बोदरा को अपने अनुज सा स्नेह देते थे। स्व. टयूडर बोदरा ने स्व. लाको बोदरा को 1958 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु से मिलवाया एवं उन्हें ‘हो’ संस्कृति एवं ‘हो’ लिपि की जानकारी भी दी, जिसे जानकर नेहरू जी भी काफी प्रभावित हुए थे।
इसी तरह ही संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में प्रदर्शित करने का गुरू लाको बोदरा जी को कई बार गौरव प्राप्त हुआ।
श्रीमती इन्दिरा गाँधी के प्रधान मंत्रित्व के समय में भी स्व. बोदरा जी को श्रीमती गाँधी ने 1976 में दिल्ली आमंत्रित किया था जिसमें लाको बोदरा जी ने ‘हो’ संस्कृति का वाकायदा प्रतिनिधित्व किया। उन्हें अखिल भारतीय आदिवासी कल्चर में Chief of the chief की उपाधि से सम्मानित किया गया और श्रीमती गाँधी ने उन्हें सोना का तगमा (Gold medal) प्रदान किया। उस अवसर पर प्रो. बलराम पाठ पिंगुवा (राँची वि.वि.) एवं चरण हाँसदा भी उनके साथ दिल्ली में उपस्थित थे।
गुरू लाको बोदरा को ‘हो’ जाति ने, ‘हो’ समाज ने, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक साहित्यिक आयुर्विज्ञान के गुरू की मान्यता दी। यही करण था कि वे गणतंत्र दिवस पर ‘हो’ जाति का प्रतिनिधित्व करने के लिए समय-समय पर भारत सरकार के द्वारा आमंत्रित किए जाते रहे।
वे आकाशवाणी राँची से भी लम्बे समय तक जुड़े रहे तथा आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान से गीत-संगीत के लिए बुधन सिंह कुकंल तथा साथियों को राँची आकाशवाणी से जोड़ने का श्रेय भी उनको जाता है।
वे राँची विश्वदिधालया के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के परामर्श दातृ समिति के मान्य सदस्यों के रूप में श्री मन्ना पिंगुवा तत्कालीन प्रधानाध्यापक, एस. पी. जी. मिशन का विधालय चाईबासा, ग्राम-कुन्डियाधर तथा श्रा चरण हाँसदा, तालाबुरू से जुड़े रहे।
वे बिहार जन जातीय शोध संस्थान के सलाहकार समिति के सदस्य तो थे ही इसके अलावे अपने जीवन काल में कई संस्थाओं से भी विभिन्न हैसियत से जुड़े रहे।
मुण्डा समाज के द्वारा निकलने वाली मासिक पत्रिका “जगर साड़ाइङ” के एक अंक में, पृष्ठ 17 पर मुण्डा साहित्य सम्मेलन राँची अप्रैल 5, 1960 का जिक्र है जिसमें लिखा गया है श्री थेयोदोर बोदरा भूतपूर्व सदस्य राज्य सभा ने बताया है कि सिंहभूम के श्री लाको बोदरा ने मयूरभंज की पहड़ियो से एक ऐसे हरफ का पता लगाया है जो इस भाषा के लिए अपनायी जा सकती है। श्री लाको बोदरा ने इस हरफ को अपनाया है और इसका प्रचार करना शुरू किया है इस हरफ में कई किताबें प्रकाशित हुई है। अभी यह विषय भारत सरकार के पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) के अध्ययन में है। श्री बोदरा ने कहा कि ऐसा दावा किया जाता है कि हरपा एवं मोहेंजोदड़ो की सभ्यता से हरफो का सम्बन्ध है।
इस तरह उनके व्यक्तित्व एवं “वारङ क्षिति ” लिपि की चर्चा स्थानीय नहीं रह गई थी। उसकी चर्चा जिले से बाहर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर हो गई थी।
अन्त में यह कहा जा सकता है कि गुरू कोल लाको बोदरा सर्दगुण सम्पन्न व्यक्ति थे ‘हो’ समुदाय ही नहीं सम्पूर्ण मानवता के लिए वे एक आदर्श व्यक्ति थे। उनकी वाणी में हमेशा निर्मल परिहास की गंगोत्री थी। वे कर्मयोगी थे परिश्रमी थे और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। जीवनोपरान्त ‘हो’ समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयों को समाप्त करने के लिए संघर्षरत थे।
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